आज से दो दशक पहले अंग्रेजी बोल पाना बड़ी बात थी। तब यदि आप अंग्रेजी बोलना जानते थे तो समाज में आपका रुतबा होता था। अब जब सब अंग्रेजी सीख रहे हैं, वही रुतबा आपको तब हासिल होता है जब आप का अंग्रेजी के शब्दों उच्चारण सही हो। सामान्य स्कूल से पढ़ा व्यक्ति जो पहले अंग्रेजी न बोल पाने के कारण अंग्रेजी बोलने वाले के सामने छोटा महसूस करता था, आज वही काम अंग्रेजी उच्चारण के माध्यम से होता है। मतलब ये कि जो खाई पहले थी वो अब भी है। क्रीचर (creature) को क्रिएचर, फेमिन (femine) को फेमाइन, वॉज़ (was) को वाज़, ऐथीएस्ट (athiest) को अथीस्ट उच्चारित करना कई बार हम में से बहुतों को शर्मसार करता है। हम अपने मन के भीतर इन्फीरिओरिटी काम्प्लेक्स को पाल लेते है। होना ये चाहिए कि हम इंटरनेट के युग में अंग्रेजी की डिक्शनरी हमेशा साथ रखे और सही उच्चारण सीखें। मैं भी सरकारी स्कूल से ही पढ़ा हूँ। लिखने वाली अंग्रेजी तो थोड़ी बहुत आती थी स्नातक में भी - पर अंग्रेजी बोलने में जीरो था। कभी बोलने का मौका नहीं मिला क्योंकि पढाई का माध्यम हमेशा हिंदी रहा था। स्नातकोत्तर में कहीं जाकर थोड़ा थोड़ा बोलना शुरू किया - बहुत बार अपने आप को अंग्रेजी में व्यक्त नहीं कर पाने के कारण दुखी हो जाता था - ऊपर से उच्चारण की समस्या। जब अपने कान्वेंट, मिशन, मेथोडिस्ट चर्च स्कूल से पढ़े मित्रों को कक्षा में सुनता, तो और भी दुखी हो जाता। बॉम्बे में एडमिशन मिला तो थोड़ा सहूलियत हुई, एक आध लोग अंग्रेजी बोलने वाले मिले। पर समस्या वही उच्चारण की - ये समस्या इतनी गंभीर है कि इससे छुटकारा पर पाने में आपको सालों लग सकते हैं यदि आप लगातार सीखते हैं। इंग्लैंड में रहकर भी उच्चारण और शब्दावली को लेकर रोज कुछ न कुछ नया सीखना आम बात है। इसलिए अगर आप भी इस समस्या से ग्रस्त हैं तो हो सके तो आज ही उच्चारण सुधार पर जुट जाइये और अपने बच्चों को भी सिखाइये ताकि अंग्रेजी उच्चारण से रुतबा कायम करने वालों से उसे इन्फीरिओरिटी काम्प्लेक्स न हो।
Perfectionism is the enemy of creation, as extreme self-solitude is the enemy of well-being. - John Updike
अंग्रेजी के शब्दों का उच्चारण
आज से दो दशक पहले अंग्रेजी बोल पाना बड़ी बात थी। तब यदि आप अंग्रेजी बोलना जानते थे तो समाज में आपका रुतबा होता था। अब जब सब अंग्रेजी सीख रहे हैं, वही रुतबा आपको तब हासिल होता है जब आप का अंग्रेजी के शब्दों उच्चारण सही हो। सामान्य स्कूल से पढ़ा व्यक्ति जो पहले अंग्रेजी न बोल पाने के कारण अंग्रेजी बोलने वाले के सामने छोटा महसूस करता था, आज वही काम अंग्रेजी उच्चारण के माध्यम से होता है। मतलब ये कि जो खाई पहले थी वो अब भी है। क्रीचर (creature) को क्रिएचर, फेमिन (femine) को फेमाइन, वॉज़ (was) को वाज़, ऐथीएस्ट (athiest) को अथीस्ट उच्चारित करना कई बार हम में से बहुतों को शर्मसार करता है। हम अपने मन के भीतर इन्फीरिओरिटी काम्प्लेक्स को पाल लेते है। होना ये चाहिए कि हम इंटरनेट के युग में अंग्रेजी की डिक्शनरी हमेशा साथ रखे और सही उच्चारण सीखें। मैं भी सरकारी स्कूल से ही पढ़ा हूँ। लिखने वाली अंग्रेजी तो थोड़ी बहुत आती थी स्नातक में भी - पर अंग्रेजी बोलने में जीरो था। कभी बोलने का मौका नहीं मिला क्योंकि पढाई का माध्यम हमेशा हिंदी रहा था। स्नातकोत्तर में कहीं जाकर थोड़ा थोड़ा बोलना शुरू किया - बहुत बार अपने आप को अंग्रेजी में व्यक्त नहीं कर पाने के कारण दुखी हो जाता था - ऊपर से उच्चारण की समस्या। जब अपने कान्वेंट, मिशन, मेथोडिस्ट चर्च स्कूल से पढ़े मित्रों को कक्षा में सुनता, तो और भी दुखी हो जाता। बॉम्बे में एडमिशन मिला तो थोड़ा सहूलियत हुई, एक आध लोग अंग्रेजी बोलने वाले मिले। पर समस्या वही उच्चारण की - ये समस्या इतनी गंभीर है कि इससे छुटकारा पर पाने में आपको सालों लग सकते हैं यदि आप लगातार सीखते हैं। इंग्लैंड में रहकर भी उच्चारण और शब्दावली को लेकर रोज कुछ न कुछ नया सीखना आम बात है। इसलिए अगर आप भी इस समस्या से ग्रस्त हैं तो हो सके तो आज ही उच्चारण सुधार पर जुट जाइये और अपने बच्चों को भी सिखाइये ताकि अंग्रेजी उच्चारण से रुतबा कायम करने वालों से उसे इन्फीरिओरिटी काम्प्लेक्स न हो।